मुक्तक
बुझा न आग पानी से कहीं खुद ही न जल जाए
तड़पती है बड़ी बेबस न जाने कैसा कल आए
ये कुर्सी है बड़ी नाजुक ना चिपको फैवी क्विक जैसे
सताओ न गरीबों को कहीं न शाम ढाल जाए
कृष्णकांत गुर्जर
बुझा न आग पानी से कहीं खुद ही न जल जाए
तड़पती है बड़ी बेबस न जाने कैसा कल आए
ये कुर्सी है बड़ी नाजुक ना चिपको फैवी क्विक जैसे
सताओ न गरीबों को कहीं न शाम ढाल जाए
कृष्णकांत गुर्जर