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24 Dec 2019 · 1 min read

मुक्तक

बुझा न आग पानी से कहीं खुद ही न जल जाए
तड़पती है बड़ी बेबस न जाने कैसा कल आए
ये कुर्सी है बड़ी नाजुक ना चिपको फैवी क्विक जैसे
सताओ न गरीबों को कहीं न शाम ढाल जाए
कृष्णकांत गुर्जर

Language: Hindi
5 Likes · 275 Views
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