मुक्तक
हम जो लिखते रहे तुम मिटाते रहे,
लफ्ज़ो के फासले तुम बढ़ाते रहे,
सबने देखी हमारी हंसी और हम-
आंसुओं से स्वयं को छुपाते रहे।
हम जो लिखते रहे तुम मिटाते रहे,
लफ्ज़ो के फासले तुम बढ़ाते रहे,
सबने देखी हमारी हंसी और हम-
आंसुओं से स्वयं को छुपाते रहे।