मुक्तक
मुझे तो चाहना उसको ही पागलपन -सा लगता है,
बिना उसके मुझे पतझड़ भी अब सावन सा लगता है?
चुराकर दिल मेरा उसने चुराया था सकुं यारों
जो मेरी जान था अब जान के दुश्मन सा लगता है,
मुझे तो चाहना उसको ही पागलपन -सा लगता है,
बिना उसके मुझे पतझड़ भी अब सावन सा लगता है?
चुराकर दिल मेरा उसने चुराया था सकुं यारों
जो मेरी जान था अब जान के दुश्मन सा लगता है,