मुक्तक
१.
धरती का दिल जिगर जल रहा है
लालच का साँप इस पे पल रहा है !
…सिद्धार्थ
२.
एक हसरत है की बचपन मुझे फिर प्यार से देखे
मेरे हाथों में अपना नन्हा सा हाँथ का साथ देके देखे !
सिद्धार्थ
१.
धरती का दिल जिगर जल रहा है
लालच का साँप इस पे पल रहा है !
…सिद्धार्थ
२.
एक हसरत है की बचपन मुझे फिर प्यार से देखे
मेरे हाथों में अपना नन्हा सा हाँथ का साथ देके देखे !
सिद्धार्थ