मुक्तक !
चूल्हे में डालो बंदूकों को, प्यार की रोटी सिक जाने दो
धर्म की बातें छोड़ गरीबी-भुखमरी की बातें हो जाने दो।
मुंसिफ हुई है जो सरकार उसे प्रतिकार का महत्व बताने दो
जनता की फटी हुई जेब बुझे हुए चूल्हों पर भी तो बतियाने दो।
रसूखदार के हिमायत में है, मजबूरों को धर्म का अभयदान दिया
ऐसे सरकार को कभी तो भूख धर्म से भेंट एक बार हो जाने दो।