मुक्तक
१.
मैंने सोचा है…
रुह के दीवानखाने में
रख लूँ तुम्हें,…
किरायेदार बनाकर
पहले कहो तो…
मकां पसंद आया…
***
२.
वो मुझ में मेरा हिस्सा बन के ही छूटा है
बाहर जाने मुझ से ही क्यूँ थोड़ा रुठा है !
…सिद्धार्थ
***
३.
बहुत खाये- अघाये हो तुम, बहुत ज़्यादा मैं भी भूखी हूँ
करूँ क्या मैं… ?
मुझ तक पहुँचने वाली, रहमत की हर नदी ही सूखी है !
…सिद्धार्थ