मुक्तक
उठो लड़ो संघर्ष करो तुम
हार न मानो विषम समय से।
प्रीत ही मन की मीत समझना
मत डर जाना आडम्बर से।।
झूंठे हैं धन – तन के रिश्ते
बात न भूलो कभी ज़हन से।
होगी जीत रखो तुम साहस
सुजन नहीं डरते दुर्जन से।।
उठो लड़ो संघर्ष करो तुम
हार न मानो विषम समय से।
प्रीत ही मन की मीत समझना
मत डर जाना आडम्बर से।।
झूंठे हैं धन – तन के रिश्ते
बात न भूलो कभी ज़हन से।
होगी जीत रखो तुम साहस
सुजन नहीं डरते दुर्जन से।।