मुक्तक
क़ता
तेरा चेहरा गुलाब हो जैसे
एक शायर का ख़्वाब हो जैसे
इस तरह मदभरी है आँख तेरी
इक पुरानी शराब हो जैसे
प्रीतम राठौर भिनगाई
क़ता
तेरा चेहरा गुलाब हो जैसे
एक शायर का ख़्वाब हो जैसे
इस तरह मदभरी है आँख तेरी
इक पुरानी शराब हो जैसे
प्रीतम राठौर भिनगाई