मुक्तक
ग्लोबल वार्मिग से अब तो,ग्लेशियर पिघलने लगे है
दिनकर भी रोस मे,आग इस कदर उगलने लगे है
प्रक्रति,बदलने की जिद मे,मानव ने हर हद तोड़ दी
विध्वंस, धरा की प्रतिक्रिया का,सब झेलने लगे है
ग्लोबल वार्मिग से अब तो,ग्लेशियर पिघलने लगे है
दिनकर भी रोस मे,आग इस कदर उगलने लगे है
प्रक्रति,बदलने की जिद मे,मानव ने हर हद तोड़ दी
विध्वंस, धरा की प्रतिक्रिया का,सब झेलने लगे है