मुक्तक
वो मुझे लफ़्ज़ों से अपने लबरेज़ कर गया
आखों से छलका ऐसे मुझे मोती कर गया…
/
जिन्हें वस्ल-ए-यार कि हवस हो
ख़्वाबों से करते कहां परहेज़
वो मुस्कुरा भी दे तो मोती छलक आते हैं …
वस्ल-ए-यार = प्रिय से मिलना
***
27-04-2019
… सिद्धार्थ…
वो मुझे लफ़्ज़ों से अपने लबरेज़ कर गया
आखों से छलका ऐसे मुझे मोती कर गया…
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जिन्हें वस्ल-ए-यार कि हवस हो
ख़्वाबों से करते कहां परहेज़
वो मुस्कुरा भी दे तो मोती छलक आते हैं …
वस्ल-ए-यार = प्रिय से मिलना
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27-04-2019
… सिद्धार्थ…