मुक्तक
बुढ़ापे में जो नज़र कमज़ोर हो गई
अफ़सोष सब की नीगह पलट गई
हर चीज़ पुछता हूं,उलझी सी नज़र
उजली सहर जैसे अंधेरी रात हो गई
सजन
बुढ़ापे में जो नज़र कमज़ोर हो गई
अफ़सोष सब की नीगह पलट गई
हर चीज़ पुछता हूं,उलझी सी नज़र
उजली सहर जैसे अंधेरी रात हो गई
सजन