मुक्तक
इक जहान के अंदर कई जहान लिए,
ये जारी है सफर मेरा नई उड़ान लिए,
निकल पड़ी हूँ मंज़िल की तलाश में
ज़मीन पाँव तले सर पे आसमान लिए
इक जहान के अंदर कई जहान लिए,
ये जारी है सफर मेरा नई उड़ान लिए,
निकल पड़ी हूँ मंज़िल की तलाश में
ज़मीन पाँव तले सर पे आसमान लिए