मुक्तक
चलो ज़िंदगी को एक हुनर से संवारा जाए
हर किसी को महोब्बत से पुकारा जाए।
लब पर चासनी में लिपटी दो बातों से
न कुछ तुम्हारा जाए न कुछ हमारा जाए।।
चलो ज़िंदगी को एक हुनर से संवारा जाए
हर किसी को महोब्बत से पुकारा जाए।
लब पर चासनी में लिपटी दो बातों से
न कुछ तुम्हारा जाए न कुछ हमारा जाए।।