मुक्तक
गुजरे वक्त के साये जब कदमों से लिपट जाते है
यादों के कितने मौसम पल भर में पलट जाते हैं
निगाहें लगती है तकने रस्ता अनजान से राही का
गिरते है अश्क पलको से औ खुद में सिमट जाते है।
वंदना मोदी गोयल
गुजरे वक्त के साये जब कदमों से लिपट जाते है
यादों के कितने मौसम पल भर में पलट जाते हैं
निगाहें लगती है तकने रस्ता अनजान से राही का
गिरते है अश्क पलको से औ खुद में सिमट जाते है।
वंदना मोदी गोयल