मुक्तक –सुनहरा सपना
धरा से आतंकियो को मिटा दो।
अहिंसा की ज्योति को जगा दो।
तीर्थयात्री जयकारा लगाते चलें,
त्रिलोकनगरी फूलों से खिला दो।
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सुगंधितकेशरक्यारियों को महका दो।
झीनीचुनरी नायिकाओं की उड़ा दो।
देवता झुके गायें बर्षा करने लगे,
खगस्वप्नो की उड़ानों से बहका दो।।
सज्जो चतुर्वेदी*****सुनहरा सपना