मुक्तक — सच लिखना — छा गई घटा
सच लिखना भी गुनाह हो गया।
झूट की टोकरी में वह तो खो गया।
कहां खोजू ,कैसे मिलेगा ,कोई बताए,
ढूंढ ढूंढ कर में तो यारों,
बैचेन हो गया।।
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छा गई घटा ,घनघोर है।
नाचा मन का मोर है
जम कर बरसे मेघा सारे, फूट पड़े है झरने सारे।
तरसता रहा मन,बरसता रहा सावन,
नहीं आया तो बस वहीं ,
जो मेरे दिल का चितचोर है।।
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राजेश व्यास अनुनय