मुक्तक (संग्रह)
1
खूबसूरत हूँ मगर किरदार से
मैं जुड़ी रहती सदा आधार से
है न नफरत के लिये दिल में जगह
जीतना दिल चाहती हूँ प्यार से
2
जरा सा दिल का करार दे दो
जो जोड़ दे दिल वो तार दे दो
न चाहिए तुमसे कोई दौलत
हमें हमारा ही प्यार दे दो
3
नाव भी है नदी का किनारा भी है
कर रहा ये हमें कुछ इशारा भी है
आते हैं ज़िन्दगी में यूँ तूफान बहुत
पर हमें मिलता कोई सहारा भी है
4
छिपे हर राज से पर्दा हटाना छोड़ो भी
हमेशा बात को दिल से लगाना छोड़ो भी
कभी अपने गिरेबाँ में भी तो तुम झांकना
सदा ही दोष औरों के गिनाना छोड़ो भी
5
जब फैसले हमारे मुकद्दर के हो गये
तो मोम के थे बुत वही पत्थर के हो गये
चलती रही ये ज़िन्दगी भी अपनी चाल से
हम डोर छोड़ मोह की गिरधर के हो गये
6
उजाले खूब हैं बाहर मगर अंदर अँधेरे हैं ।
नहीं अब खिलखिलाता आदमी कितने झमेले हैं ।
खड़ी दीवार रिश्तों में, दरारें भी बहुत जिनमें
तभी अपनों में रहकर भी सभी रहते अकेले हैं
7
देख दर्पण भी हैरान सा हो गया
लग रहा उम्र का फासला हो गया
छीन बचपन जवानी बुढापा दिया
वक़्त का कर्ज सारा अदा हो गया
8
धोखे जीवन मे हमको रुलाते बहुत
पर सबक भी नये ये सिखाते बहुत
बीतती जा रही ज़िन्दगी की सुबह
साँझ के अब अँधेरे डराते बहुत
9
टूटते रिश्तों का अब जहां देखिये
घर को होते हुए भी मकां देखिये
बाग फूलों के जिसने लगाए यहाँ
है अकेला वही बागवां देखिये
10
गये जब भूल तुम हमको चहकते हम भला कैसे
गिरे पतझड़ के पत्तों से लहकते हम भला कैसे
तुम्ही से थी बहारें खुशबुओं से मन महकता था
हुये अब फूल कागज़ के महकते हम भला कैसे
11
हँसे बेटियाँ तो हँसे घर का आँगन
पढ़ें बेटियाँ तो सँवरता है जीवन
न बेटी कहीं बेटों से कम यहाँ है
हो संस्कारी दोनों तो खिलता है उपवन
12
मुस्कुराते हमको जीना आ गया
आंखों से ही गम को पीना आ गया
लड़खड़ाते भी नहीं हैं अब कदम
पीने का लगता करीना आ गया
13
रोते क्यों रहते सदा तकदीर तुम
भूल खुशियां याद रखते पीर तुम
जी लो जी भरके ये अपनी ज़िंदगी
छोड़ जाओगे यहीं जागीर तुम
14
तम ज़िन्दगी के आज तक देखो मिटे नहीं
चलती रही हवाएं ये दीपक जले नहीं
हमको पता नहीं खफा हमसे क्यों हो गये
महफ़िल में तो आये मगर हमसे मिले नहीं
15
जो मिले थे कभी अजनबी की तरह
हो गये अब वही ज़िन्दगी की तरह
हर निभाई कसम साथ छोड़ा नहीं
प्यार हमने किया बन्दगी की तरह ।
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद