मुक्तक {मात्राभार १४}
चले आओ चले आओ।
सजन अब घर चले आओ।
विरह में मैं न मिट जाऊं-
दरश देने चले आओ।।
✍️पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
चले आओ चले आओ।
सजन अब घर चले आओ।
विरह में मैं न मिट जाऊं-
दरश देने चले आओ।।
✍️पं.संजीव शुक्ल “सचिन”