“मुक्तक”- (जो कुछ भी ख़्वाबों में….)
“मुक्तक”- (जो कुछ भी ख़्वाबों में….)
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जैसे – जैसे मैं हूॅं पिछड़ता जा रहा !
स्वास्थ्य भी मेरा है बिगड़ता जा रहा !
जो कुछ भी ख़्वाबों में सजने लगे थे ,
उसका दायरा भी सिकुड़ता जा रहा !!
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 08-08-2021.
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