मुक्तक… छंद मनमोहन
१-
शीश झुकाकर करूँ नमन।
करो प्रभो सब पाप शमन।।
द्वेष-दंभ सब करें गमन।
रहे देश में सदा अमन।।
२-
सर-सर सर-सर चले पवन।
नर्तन करते धरा – गगन।।
मन विरहन के लगी अगन।
दुनिया खुद में रहे मगन।।
३-
कैसे उनको लगी भनक।
रखे यहाँ पर कनक-कनक।।
थी नयनों में नयी चमक।
खेल-खेल में गढ़ा यमक।।
४-
उठी हृदय में कौन सटक ?
करता क्यों ये उठा-पटक ?
पहले ही मन गया खटक ।
दर्पण भी लो गया चटक।।
५-
कितना ऊँचा उठा गगन।
फिर भी नीचे किए नयन।।
कर्म निरत नित रहे मगन।
हममें भी हो वही लगन।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)