मुक्तक काव्य
जगत में कहीं किसी की जग हंसाई ना हो,
सफ़र-ए-जिंदगी में किसी के तन्हाई ना हो।
हर दिन की इब्तिदा नई उम्मीद के साथ हो
सर पर किसी के बुरे वक्त का साया ना हो।
जगत में कहीं किसी की जग हंसाई ना हो,
अपनों द्वारा किसी दिल की दुखाई ना हो।
ना मन में मैल हो, ना ही हृदय में घृणा हो,
हर रिश्ते में खुशियों की सदा बौछारे हो।
जगत में कहीं किसी की जग हंसाई ना हो,
फिजुली खर्चों में विभव की उड़ाई ना हो।
नशे जैसी बुरी लत से सदा दूर रहे यौवन,
हिस्से में कभी भी किसी के जुदाई ना हो।
– सुमन मीना अदिति)
लेखिका एवं साहित्यकार