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19 Sep 2021 · 1 min read

मुक्कमल

कुछ भी मुकम्मिल नहीं पर क्यों लगता है जो है वो काफी है क्या कुछ होना कुछ ना होने से ज़्यादा बेहतर नहीं है पर किसपर इतना अख़्तियार कि सब अपना लगे शायद कुछ भी तय नहीं और न ही तय किया जा सकता जो चल रहा है अब वही ठीक है उसी को अपनी नियति मान लेना ज़्यादा मुफ़िद है।दिन आता है बढ़ता है पर योंही गुज़र जाता है कुछ अलग सा क्यों नही उस दिन के जैसा जो कल्पना से कहीं अधिक परिपक्व था और कहीं बनावटीपन भी नहीं हमें क्यों लगता है कि हमें देखकर ताली बजाने लगे मुस्कुराने लगे कुछ भी तो नहीं ऐसा जो हमें दूसरों से कुछ मुखतलिफ कर सके …

मनोज शर्मा

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 271 Views
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