मुकम्मल ये घर नहीं
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जिंदगी 100 बरस , पल की खबर नहीं
मश्गूल है जहां में, खुद की खबर नहीं
नेकी क्या बदी है,रखता नजर नहीं
खुदगर्जीयों में उलझा, दीन ए असर नहीं
न संजीदगी न बंदगी, न फर्जे अदाएगी
न मौत की खबर , एक दिन उठा ले जाएगी
ये है जगत का मेला,हर शख्स है अकेला
कर्मों है झमेला, कोई गुरु न चेला
फानी है ये दुनिया, मुकम्मल ये घर नहीं
जन्नत मिले या दोजख, खुदा का भी डर नहीं
सुरेश कुमार चतुर्वेदी