मुकम्मल इश्क़
मुकम्मल होते ही बवाल होता है ये इश्क़।
हो अधूरा तो बाकमाल होता है ये इश्क़।
इसकी अदावतें कैसे हम बताये तुम्हें,
एक पेचीदा सा सवाल होता है ये इश्क़।
डूब कर जाना ,एक आग के दरिया में
एक सुलगता सा ख्याल होता है ये इश्क़।
अधूरे इश्क़ में ,बुत की अहमियत होती है
वक्त की टेढ़ी ,चाल होता है ये इश्क़।
मरहले कैसे कैसे ये हम को दिखाता है
माना हम ने बेमिसाल होता है ये इश्क़।
सुरिंदर कौर