मुकद्दर
बता मुझको सभी के मुकद्दर को बनाने बाले ।
टूटा हुआ तारा कहते हैं सब सताने बाले ।
सभी के साथ वफादारी निभाती हूं हरपल ।
फिर क्यों बेवफा कहते हैं मुझको ज़माने बाले ।
में जब भी घर से निकलू तो क़यामत होगी ।
शहर जाएं तो गलियों में फ़जिलत होगी ।
कब वो दिन आएंगे ख्वाब सजाने बाले ।
मेरी टूटी किस्मत को फिर से बनाने बाले ।
जिम्मा हम भी निभाएंगे तेरा बेटों की तरह ।
कब समझ पाए मुझे मेरे घराने बाले ।।
Phool to