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22 Apr 2017 · 1 min read

मुकद्दर से हारा है तू

दामन को आंसुओं से
कयूं भिगोता है तू
कर्मो से नही
मुकद्दर से हारा है तू ।

मुश्किलों के तूफानो से
कयूं डरता है तू
अपने मुकद्दर से
कयूं नही लड़ता है तू ।

बदला है रूख हवाओं ने
कश्ती को कयूं नही चलाता है तू
सागर की उठती लहरों से
क्यूं नही टकराता है तू ।

रिसते हुये जख्मो को
क्यूं नही नमक लगाता है तू
हारी बाजी को पलट कर
सिकन्दर कयूं नही कहलाता है तू ।।

राज विग

Language: Hindi
181 Views
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