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13 Feb 2024 · 1 min read

मुकद्दर से ज्यादा

मुकद्दर से ज्यादा मिला*

यादों के झरनों में यूँ ही बहकता रहा।
बेमतलब आईने में यूँ ही सँवरता रहा।।

बादलों की ओट में छिपे चाँद की तरह।
मैं जमाने के सामने यूँ ही गुजरता रहा।।

आस पास ही सही तुम मेरे करीब लगती हो।
ये सोच कर वक़्त का पहिया यूँ ही लुढ़कता रहा।।

कौन जहमत उठाए बेफिजूल में यहाँ।
ये सोचकर पुराने समान को यूँ ही बदलता रहा।।

ढल जाता है दिन भी शाम आने पर राजेश।
मुक्कदर से ज्यादा मिला मुझे यूँ ही समझता रहा।।

-डॉ. राजेश पुरोहित

Language: Hindi
1 Like · 158 Views
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