मुकद्दर की बात है….
हर इंसां कर्मशील है पथ पर अपने आज ।
कल जिसको जितना मिल जाए,
मुकद्दर की बात है।।
हाथ में लिए फिरते है, जाम वो इश्क़ का।
नशा जिसको जितना चढ़ जाए,
मुकद्दर की बात है।।
हर कोई कहता है, कद्र नहीं है रिश्तों की।
अब सम्भाल हो खुद ही,
जिससे जितना सम्भल जाए।।
मैं तेरी तुम भी मेरे, अब मिल भी जाओ ना।
डगर सुहानी कितनी होगी,
मुकद्दर की बात है।।
तू तो कहता था, तुझे मैं भूल नहीं सकता।
क्यों हो गये खामोश इतने,
क्या? मुकद्दर की बात है।।
ड़गर इश्क़ की कठिन बहुत है लेकिन
साथ जिसको जितना मिल जाए,
मुकद्दर की बात है।।