मुंशी प्रेमचंद जी…..(को उनके जन्मदिन पर कोटि कोटि नमन)
मुंशी प्रेमचंद जी…..(को उनके जन्मदिन पर कोटि कोटि नमन)
लेखनी चले कलमकार की
बोले मैं धनपत सा हो जाऊँ
प्रेम मिले पाठक से इतना
मैं मुंशी प्रेमचंद बन जाऊं।
लिखकर मैं अपना साहित्य धर्म निभाऊ,
इतना लिखूं मैं लोगों के मन पर छा जाऊं,
कर्तव्यनिष्ठा जीवन हो मेरा
उस जीवन को साहित्य को अर्पण कर जाऊं।
कर्म धर्म सब लेखन हो मेरा
लेखन से जिऊ लेखन में आत्मसमर्पण कर जाऊँ
जनता की इस मौन वाणी को
नया नाम में कोई दे जाऊं।
मुंशी सा साहित्यकार मिला ना मुझको,
कैसे मैं उनकी सामाजिक-आर्थिक
भूमि को भूल जाऊं,
भूख प्यास सब भूलकर
रात दिन लेखन करता जाऊँ।
सामाजिक परतों को खोल खोल कर,
नित्य अध्ययन तुम्हारा करता जाऊं,
शत शत नमन तुम्हारी लेखनी को,
हे साहित्य के राजकुमार नीत में अपना शीश झुकाऊं।
हरमिंदर कौर
अमरोहा, उत्तर प्रदेश
स्वरचित रचना