मी टू (लघुकथा)
लघु कथा: मी टू
लेखक: रवि प्रकाश ,रामपुर
जिठनिया ने अपनी साड़ी का पल्लू कमर में खोंसा और अखबार के दफ्तर में संपादक के कमरे में धड़ाधड़ अंदर चली गई। संपादक हैरान था। जिठनिया उससे बोली-” मी टू ! मी टू ! ”
संपादक की कुछ समझ में नहीं आया। -“क्या कहना चाहती हो ? साफ-साफ बताओ, बात क्या है”।
जिठनिया ने आंखों को नचाते हुए कहा-” बड़े भोले बन रहे हो ! रोजाना तो अखबार और टीवी पर मी टू की बातें हो रही हैं । मैं भी आठवीं पास हूं । सब जानती हूं ।”
संपादक ने थोड़ा नर्म होकर पूछा-” क्या बात है बताओ ”
“वेटर का काम करती हूं ।वहीं पर छोटू है। वह भी मेरी तरह है । हर समय गंदी निगाहों से मुझे घूरता रहता है । जब भी मौका मिलता है, छूने की कोशिश करता है। मैं उसके खिलाफ आपके पास आई हूं ।”
संपादक थोड़ा मुस्कुराया और बोला “तुमने रेस्टोरेंट के मालिक से शिकायत नहीं की?”
” जी की थी ..”-जिठनिया ने तेजी के साथ कहा”- लेकिन उसने कहा कि तेरे साथ कोई बलात्कार थोड़ी कर लिया है जो उसे नौकरी से निकाल दूं ?”
फिर मैं थानेदार के पास गई लेकिन वह तो उससे भी ज्यादा गंदी निगाहों से मुझे देख रहा था। 2 मिनट भी रुके बिना मुझे वहां से वापस आना पड़ा। पूछ रहा था -“कहां कहां छुआ है ? ”
बदतमीज कहीं का !
संपादक बोला” मी टू में मैं तुम्हारे लिए कोई मदद नहीं कर सकता। ”
जिठनिया का चेहरा मुरझा गया। बोली” क्यों ? आप तो सब जगह यही चला रहे हैं”
संपादक बोला -” ना तो तुम कोई मशहूर हस्ती हो और ना जिसके खिलाफ तुम आरोप लगा रही हो वह कोई मशहूर व्यक्ति है। साधारण लोगों के लिए मी टू नहीं है ”
सिर झुका कर आंख में आंसू ला कर जिठनिया बोली ” फिर मैं कहां जाऊं ?”
संपादक बोला” मुझे कुछ नहीं पता”
(समाप्त)