*”मीरा”*
“मीराबाई”
मीरा श्याम की दीवानी जोगन भई
सांवली सूरतिया में मगन हो गई।
कृष्ण नाम को पुकारती बावरी हो गई।
वो तो गली गली ढूंढती व्याकुल सी हो गई।
कोई रोके नही कोई टोके नही प्रेममगन हो गई।
वो तो गोविंद गोपाल हरि गुण गाते चली गई।
संतो के संग बैठ मोहन के रंग में रंग गई।
मीरा मोहन सांवरिया को मनाने चली गई।
दुःख लाखों सहे मुख से गोविंद गोपाल कहते गई।
अथाह सागर में गोते सरिता बहा समाते गई।
अनोखी पहल प्रीत जगा रीत रिवाजों को छोड़ गई।
भगवा वस्त्र पहने तुलसी की माला पहन गई।
हाथ में वीणा ले एकतारा बजाते पांव में घुँघरू बांध गई।
राणा ने विष दिया मानो अमृत समझ कर पी गई।
सांप का पिटारा भेज दिया माला समझ पहन गई।
बिच्छू की पेटी भेज दिया छल्ला अंगूठी समझ पहन गई।
महलों में बंद कर दिया तो सत्संग की धुन में रम गई ।
अनोखी प्रीत जगी कृष्ण की दीवानी लोक लाज छोड़ जीवन ज्योति बन गई।
भक्ति में तल्लीन हो मीरा नाचे आसक्ति नही दूजा रंग प्रेमदिवानी हो गई।
शशिकला व्यास ✍️