मीरा ने अपने मन को बँसुरिया बना लिया
आँखों के नीरकुम्भ को दरिया बना लिया
हमने गमों को जीने का जरिया बना लिया
राधा को मिला दर्द ही जब दर्द प्रेम में
उस दर्द को ही उसने सँवरिया बना लिया
देखूँगा सुबहो शाम अकेले में बैठकर
यादों को तेरी हमने गुजरिया बना लिया
ये रूह,जिस्म,जान,जिगर उसको सौंपकर
जीने का इक हसीन नजरिया बना लिया
खंजर से प्रेम के सुराख मन पे जब हुआ
मीरा ने अपने मन को बँसुरिया बना लिया