मीन
मनहरण घनाक्षरी
***** मीन ******
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ये दुनिया हसीन है,
ज्यों चलती मशीन है।
जगत की रीत देखो,
क्यों ये मनु दीन है।।
ताल का मलीन पानी,
सागर सा नही सानी।
नदी बहती है सदा,
नीर बिन मीन है।।
तप रही जमीन है,
पसीना नमकीन है।
खाली कर है लौटता,
श्रमिक अधीन है।।
काली घन घोर घटा,
बिखेरती खूब छटा।
बादलो के मल्हार से,
मीन भी रंगीन है।।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)