सारे घाव गुलाब
पलकों पर आँसू मुस्काये ऐसे गीत मिले
सारे घाव गुलाब हो गये जब-जब मीत मिले
सोनपरी ने ऐसा छिड़का जादू का पानी
मन के रंगमहल में फिर आये राजा-रानी
शायद वह बरसों पहले की रूठी प्रीत मिले
सारे घाव गुलाब हो गये जब-जब मीत मिले
टूटे सपनों की माला का जाप अधूरा है
साँसों की सरगम का सुर-आलाप अधूरा है
इंद्रधनुष की प्रत्यंचा का अब संगीत मिले
सारे घाव गुलाब हो गये जब-जब मीत मिले
फूलों के भी हार दिए जिनके पग थे काँटे
झोपड़ियों को भी हैं उसने राजमहल बाँटे
क्यूँ ‘असीम’ के घर को ही बालू की भीत मिले
सारे घाव गुलाब हो गये जब-जब मीत मिले
© शैलेन्द्र ‘असीम’