मीठे मीठे पल
लौट के फिर न आने वाले बीत गए जो कल
बचपन के दिन प्यारे-प्यारे वो मीठे-मीठे पल।
भागना फिरना यारों के संग खेलना गलियों में
धमाचौकड़ी उधम मचाना मस्ती रंगरलियों में।
कच्चे पक्के अमरूदों और बेरों पर वो मचलना
ज़िद पर अड़ना बात-बात पर पल-पल रंग बदलना
गलती करने पर मम्मी की डांट से बचकर छुपना
पापा के घर आ जाने पर लाड से गले लिपटना।
पढ़ने से बचने के लिए वो नींद का करना बहाना।
खेल खिलौनों की खातिर मम्मी-पापा को मनाना।
दिन दिन भर घर से बाहर रहना और घर ना आना
और घर बुलाने की खातिर मम्मी का पीछे आना।
खेल कूद और शरारतों से कभी ना मन का भरना
लाख मना करने पर भी अपनी मनमानी करना।
फिक्र नहीं दुनिया की कोई भी न चिंता जीवन की
खो गई वो बचपन की खुशबू कली टूटी गुलशन की
याद बहुत आते हैं मुझको आज भी वो गुज़रे पल
बचपन के दिन प्यारे – प्यारे वो मीठे – मीठे पल।
“पिनाकी”
धनबाद (झारखण्ड)
#स्वरचित