मीठे पानी की छबील
मीठे पानी की छबील
वृद्ध खुशहाल सिंह अपने बुढ़ापे के सहारे, इकलौते पुत्र जगरूप से तीन बार, पीने के लिए पानी मांग चुका।
लेकिन जगरूप शीशे के सामने खड़ा अपनी तरह-तरह की भाव-भंगिमा बना-बना कर देख रहा है।
वह शीशे के सामने से टस से मस होने का नाम नहीं ले रहा। वह कभी बालों को खड़े, कभी टेडे, कभी सीधे, कभी तिरछे कर रहा है।
उसके बाद कंघा रखकर, बाइक उठाकर वायु के वेग सा घर से निकल गया।
खुशहाल सिंह को पुत्र का यूं निकलना अजीब-सा लगा।
किसी अनहोनी की आशंका में उसने पत्नी से पूछा जगरूप कहाँ गया है?
पत्नी ने बताया कि वह बस अड्डे पर निर्जला एकादशी पर मीठे पानी की छील पर सेवा करने गया है।
पत्नी की बात सुन, पुत्र के रंग-ढंग देख, खुशहाल सिंह बिन पानी की मछली की ज्यों तड़प कर रह गया।
-विनोद सिल्ला