मीठी वाणी
मीठी वाणी ही बोलिये
कर्ण में सदा मधु घोलिये
कदाचित जिह्वा विद्या बसती
हर जन को वे यूँ परखती।
कोई हॄदय न आहत हो कभी
बोले मृदु भाषा जन सभी
वाणी सदैव मधुर रखना
प्रतिपल को यूँ प्रिय बनना
कटु वचन तरकश सम होते
कोमल हिय पे शूल चुभोते
मीठी वाणी प्रतिक्षण बोलें
क्लिष्ट,विषम गाँठे खोले।
मृदु वचन अमृत समान ही
सारांश जीवन का अब यही
व्यक्तित्व यूँ सँवर जायेगा
जीवन बगिया महकायेगा
जीवन ये अल्प लघु कितना
सप्रेम,सरल सदा ही रहना
मार्ग में सब छूट जायेगा
मधुर स्मृति छोड़ जायेगा।