मीठी नशीली बातों का काफ़िला भी देखा है……………………………
मीठी नशीली बातों का काफ़िला भी देखा है
जाने ग़ज़ल हमने वो काफ़िया भी देखा है
पूछे लोग मुझसे क्या मैक़दा भी देखा है
तेरी नज़र में हमने वो जहाँ भी देखा है
ये दुनियाँ कई तरहा से देखती दिखती है
मतलब परस्तो का ए दिल राबिता भी देखा है
सूरज ना जला घर में दूरसे ही अच्छा है
जहान रोशनी की ख़ातिर जला भी देखा है
हँसी तो हँसा बहुत रोइ तो रोया भी
सच को तो नहीं पाया आइना भी देखा है
मैं ये तो नहीं कहती दूसरा भी देखा है
वालिद के सिवा रब का आसरा भी देखा है
नाखुदा ए ज़िंदगी आपसा भी देखा है
मंज़िल की तरफ जाता रास्ता भी देखा है
—–सुरेश सांगवान ‘सरु’