मीठा आम
मैं घूम रहा था एक बगीचा,,
फल से लदे हुए थे पेड़।
मीठे मीठे और रसीले,,
आम लटकते खट्टे बेर।।
देख-कर मुँह में पानी आया,,
आम था पीला मन को भाया।
सोचा मैं इस आम को खाऊँ।
खाकर अपनी भूख मिटाऊँ।।
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पर हाय!
मैं उस तक पहुँच न पाया।
परितः कोई नजर न आया।।
अब मेरे उदर में मूषक दौड़े।
मिल जाते कुछ फल ही थोड़े?
हाय! विटप तुझे दया न आयी?
क्या पाया ग़र न भूख मिटायी?