मीटू अभियान पर मेरी ताजा रचना…..
देखो तो कुछ विष कन्याएं ज्ञान बांटने निकली हैं।
मीटू को हथियार बनाकर गला काटने निकली हैं।।
जुल्फों की लट से, नयनों से, यौवन के अंगारों से।
तरह-तरह के स्वप्न दिखाए, प्रीत भरे उच्चारों से।।
किए बहुत से समझौते, अब आसमान को चूम रहीं।
लिए जानकी वेष आजकल सूपर्णखाएं घूम रहीं।।
दौलत-शौहरत पाकर देखो खुद पर कैसे ऐंठी हैं।
कई उर्वशी-रम्भा भी अब सावित्री बन बैठी हैं।।
कलयुग से पहले द्वापर, त्रेता और सतयुग चला गया।
है इतिहास गवाह, पुरुष ही कदम-कदम पर छला गया।।
बिन रोटी-सब्ज़ी बोलो क्या थाली सज सकती है।
कोई बताए एक हाथ से क्या ताली बज सकती है।।
उंगली उठा रही हो ऐसे, जैसे खुद निर्दाेषी हो।
मीटू-मीटू कहने वाली, तुम भी उतनी दोषी हो।।
-विपिन कुमार शर्मा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मो. 9719046900
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कविता का उदेश्य किसी भी संस्कारी महिलाओं के दिल को ठेस पहुंचाना नही है। वे बहन-बेटियां, माताएं मेरे लिए सदैव देवितुल्य हैं, उन सभी देवियों के चरणों मे प्रणाम सहित।