मिसाल (कविता)
खेल रही हूँ जिंदगी का खेल,
जानते हुए भी; कि –
जीत अनिश्चित है और,
हार खड़ी रहती है मुँह बायें,
देखकर मुस्कुराती है,
उपहास करती प्रतीत होती है,
खेल कहाँ तक खेल सकती है ?
मैं भी मुस्कुरा देती हूँ,
चालें चली जा रही हैं,
खेल चल रहा है,
मेरे और जिंदगी के बीच,
दोनों अपनी – अपनी जगह डटे हैं,
कोशिशें जारी हैं उसकी – मेरी,
बार – बार, लगातार,
उसकी कोशिश हराने की,
मेरी कोशिश हार न मानने की,
खिलाड़ी हिम्मतवाले हैं,
खेल रोमांचक दौर में है,
देखते हैं, क्या फैसला रहता है,
सृष्टिकर्ता का …. …. ?????
और…. सुना है; जहाँ वो स्वयं है,
वहाँ हार नहीं होती कभी किसी की,
होती है बस जीत, बनती है मिसाल ।।
रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद (उ०प्र०, भारत)
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार)
ता० :- ११/०३/२०२१.