मिल नहीं सकते
ज़ख़्म नफ़रत के सिल नहीं सकते।
गुल मुहब्बत के खिल नहीं सकते।
दूसरों से तो आप मिलते हैं,
क्या कभी हम से मिल नहीं सकते।
मेरे ख़्वाबों में ही चले आओ,
जब हक़ीक़त में मिल नहीं सकते।
जो लिखा है वही मिलेगा हमें,
हम ये क़िस्मत बदल नहीं सकते।
बात करते हैं लम्बी राहों की,
दो कदम भी जो चल नहीं सकते।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद