*******मिल जाएगी मंज़िल राही*******
मिल जाएगी मंज़िल राही, चलता चला जा अपने पद कदमों से हँसते-२ ।।
कंकड़, पत्थर, आँधी, तूफ़ान से न घबराना,
मिल जाएगी मंज़िल राही, चलता चला जा अपने पद कदमों से हँसते-२ ।।
यूँ! न भटक अपने कर कर्मों से ,
आँखों में जो सजाए थे सपने, वो साकार कर दिखाना,
मिल जाएगी मंज़िल राही, चलता चला जा अपने पद कदमों से हँसते-२ ।।
डर का सामना कर आध्यात्मिकता को अपनी आत्मा में बसाए रखना,
मिल जाएगी मंज़िल राही, चलता चला जा अपने पद कदमों से हँसते-२ ।।
काँटों से बनी शेज को फूलों सा समझना,
मिल जाएगी मंज़िल राही, चलता चला जा अपने पद कदमों से हँसते-२ ।।
किसान जैसी खेती से बंजर भूमि भी उपजाऊ बनाना,
मिल जाएगी मंज़िल राही, चलता चला जा अपने पद कदमों से हँसते-२ ।।
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रचनाकार – 😇 डॉ० वैशाली ✍🏻