मिल गई मंजिल मुझे जो आप मुझको मिल गए
मिल गई मंजिल मुझे जो आप मुझको मिल गए
***************************************
मिल गई मंजिल मुझे जो आप मुझको मिल गए,
फूल फिर उजड़े चमन में आन जैसे खिल गए।
रहगुजर में हाथ दे कर हाथ में चलते रहे,
रोकते थे जो डगर से वो वहीं से हिल गए।
कर दफन अरमान दिल के खुद वहीं पर मार कर,
मामले जो शेष थे कर के यत्न सब किल गए।
दे ज़ख्म दिलदार तन – मन,आप सूली पर चढ़ी,
बन गये नासूर सारे वो जख्म भी थे छिल गए।
यार मनसीरत ज़माना भी न जीने दे रहा,
बात छोटी या बड़ी हो छड़ बना कर तिल गए।
*************************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)