मिले नहीं कहींं कहाँँ
यहाँ-वहाँ, कहाँ-कहाँ
ढूँढा मैंने सारा जहां
मिले नहीं ,कहीं कहाँ
गया था मैं जहाँ जहाँ
समय बहुत कम था
मन में चला द्वंद्व था
कह ना सका मैं वहाँ
गया था मैं जहाँ जहाँ
बहुत ही मैं अभागा था
जो तुम से दूर भागा था
पछता रहा हूँ मैं यहाँ
गया था मैं जहाँ जहाँ
तुम को बहुत चाहा था
दिल में ही बसाया था
कह ना सका तब वहाँ
गया था मैं जहाँ जहाँ
तेरा कुछ नहीं कसूर था
तब मैं बहुत मजबूर था
परिस्थिति में मैं था फंसा
गया था मैं जहाँ जहाँ
जिंदगी का एक मोड़ था
अजीबोगरीब वो दौर था
उस मोड़ पर था मैं खड़ा
गया था मैं जहाँ जहाँ
आँखों मे आया प्यार था
दिलों का प्रेम व्यापार था
रह गया था जो तब वहाँ
गया था मैं जहाँ जहाँ
अब भी तूझको चाहता हूँ
तेरे प्रेम का घना प्यासा हूँ
आ भी जाओ तुम यहाँ
गया था मैं जहाँ जहाँ
-सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)
9896872258