मिलें जो डगर वो सुहानी डगर हो।
ग़ज़ल
122…..122……122…..122
मिलें जो डगर वो सुहानी डगर हो।
तेरी जिंदगी का सुहाना सफर हो।
चले जिंदगी भर बन कर के छाया,
तुम्हें जो मिले ऐसा ही हमसफ़र हो।
नहीं पास आए तुम्हारे कोई ग़म,
दुआओं में मेरी खुदा ये असर हो।
तुम्हें चाहने वालों की भीड़ होगी,
खुदाया तुम्हारी जिधर भी नजर हो।
लगे स्वाद में मुगलई औ’र नवाबी,
तेरे हाथ का चाहे आलू मटर हो।
अगर कुछ मैं चाहूं तो ये इल्तिज़ा है,
तेरी बाहों में मेरी शामों शहर हो।
तेरे साथ जीवन कटे बनके प्रेमी,
तेरे साथ ही बस मेरी रहगुजर हो।
……..✍️ प्रेमी