मिलेंगे
सबसे पहले हम तेरे गले लगेंगे
मुद्दतों बाद हम मां से मिलेंगें
दिये घर में, अब फिर से जलेंगे
जब पापा, अपने चराग़ से मिलेंगे
आंखों से अश्क रूकेंगे ही नहीं
जब हम अपनी बहन से मिलेंगे!
वो पगली, हमसे तब से रूठी है
उससे हम किस तरह से मिलेंगे?
उसे मिले हमे अरसा हो गया है
बाखुदा,उससे हम फिर से मिलेंगे!
‘कविराज’ खुश होता है ये सोचके
एक रोज़ हम उसी मेले में मिलेंगे!
कविराज अनुराग
बांदा (उत्तर प्रदेश)