मिली सफलता
मिली सफलता जीवन में आखिर,
मात-पिता की सेवा का प्रतिफल,
उच्च माध्यमिक शिक्षक के पद पर
मेधा सूची में आया अव्वल,
बड़े ओहदों पर भाई सब मेरे,
सुख-सुविधा की बहती दरिया,
जब भी जाते मात-पिताजी,
रास न आता ‘सोने का पिंजरा’,
रहते थे दोनों ग्राम-भवन में,
हंँसी-खुशी उन्मुक्त पवन में,
आस-पड़ोस अपना-सा लगता,
बूढ़ों-बच्चों संग खूब मगन में,
भाई-बहनों में सबसे मैं छोटा,
सबका नयनों का मैं तारा,
सेवा का दायित्व मिला तब,
दिल्ली से वापस मैं आया,
जीवन-यापन का कठिन रूप देख,
थोड़ा-थोड़ा मैं घबड़ाता था,
पर मजबूत पृष्ठभूमि वश,
अपने को मैं समझाता था,
नौकरी, राजनीति तो कभी व्यापार में,
मैंने अपनी किस्मत को आजमाया,
जीवन के सत्य दर्शन पाकर,
अपनी अभिरुचि को पहचान पाया,
बच्चों की पाठशाला खोलकर,
शिक्षा क्षेत्र में कदम रखा,
अंततः सरकारी शिक्षक बनकर
आत्म संतुष्टि का वरण किया।
मौलिक व स्वरचित
©® श्री रमण
बेगूसराय (बिहार)