मिला जो दर्द है, उसको, दबा सकेंगे क्या।
गज़ल
काफ़िया- आ स्वर की बंदिश
रद़ीफ- सकेंगे क्या
मुफाइलुन फ़ियलातुन मुफ़ाइलुन फेलुन
1212……1122…….1212……22
मिला जो दर्द है, उसको, दबा सकेंगे क्या।
नये जो जख्म हैं, उनको, छुपा सकेंगे क्या।
तमाम रातें जो, भीगी हैं, आसुओं से मेरी,
उन्हें हसीन वो, फिर से, बना सकेंगे क्या।
जो गीत उनके ही, घर में बहार लाते हैं,
वो दीन दुखियों को, आकर सुना सकेंगे क्या।
वो जश्न और, तुम्हारे घरों की रौनक भी,
वो आम जनता के, घर में भी ला सकेंगे क्या,
तमाम लोगों से, ये पूछते रहे ‘प्रेमी’
जो प्यार खोया है वो, फिर से पा सकेंगे क्या।
……✍️ सत्य कुमार प्रेमी
स्वरचित और मौलिक