मिलावटी लाल
मिलावटी लाल
लोभ लालच और माया से, बना भ्रम का जाल
युग पुरुष कहलाते हैं जो, वह है मिलावटी लाल
रूप धरा कंकड़-तिनके का हुए मिक्स सब माल
काली,पीली एक न छोड़ी, मिलकर बन गए दाल
मिलकर बन गए दाल, दाल का वजन बढ़ाया
सेठ ने अपने माल से, पैसा खूब कमाया
टूट गया है अपना दांत, जब दाल में कंकर आया
देखो मिलावटी लाल को कोई, ढूंढ ना पाया ।।
आलू नें भी घी में छुपकर, उसका रूप बनाया
देसी घी की सूरत लेकर, घर में ठाठ दिखाया
कुश्ती करके पहलवान ने, जब घी का लड्डू खाया
इसी मिलावटी लाल ने उसको, अपना कमाल दिखाया
अपना कमाल दिखाया, उसको ओवरवेट बनाया
ताकत तो छोड़ो पहलवान को, मुंह से सांस ना आया ।।
पानी बन कर इसी लाल ने, नया रूप एक पाया
दूध दही में मिलकर इसने, रच दी अपनी माया
पहचान न कोई पाया इसको, सब ने धोखा खाया ।
मिलावटी लाल ने हूबहू, दूध का रूप बनाया ।।
दूध का रूप बनाया, अलग-अलग नाम कमाया
साथ में दूध के एक दिन, घर में मेंढक भी आया ।।
रेती नें भी सीमेंट में छुपकर उसका रूप है पाया ।
कालाबाजारी की दुनिया में, खूब है नाम कमाया ।
महीने में ही लेंटर गिर गया, पुल भी ठहर ना पाया ।
बाबु-ठेकेदार ने मिलकर, प्रपंच ऐसा रचाया ।
प्रपंच ऐसा रचाया, जनता में खौफ है छाया
मिलावटी लाल के नाम से, आम जन सो ना पाया ।।